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Shri Adinath Swami Digambar Jain Sansthan Atishay Kshetra, Bhatkuli (JAIN) |
Shri Adinath Swami Digambar Jain Sansthan Atishay Kshetra, Bhatkuli (Jain) District – Amravati – 444721 Telephone No. : 0721-2389041 18 k.m. far away from Amravati
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श्री आदिनाथ स्वामी दिगंबर जैन संस्थान जिला - अमरावती - ४४४७२१ : फोन न. ०७२१ - २३८९०४१ विदर्भ की भूमि पर भोजकुट अर्थात आज के भातकुली गाँव का समावेश हैं विदर्भ की प्राचीन राजधानी का नाम कौन्दन्यापुर था इसी के बराबर महत्वपूर्ण गाँव भोजकुट यानि भातकुली भी मन जाता हैं यह क्षेत्र अमरावती से पश्चिम की ओर १८ की. मी. दूर हैं. इतिहास : महाभारत काल में विदर्भ में भीमक नाम का एक रजा हुआ करता था उसके पुत्र का नाम रुक्मी ओर पुत्री का नाम रुक्मिणी था रुक्मी ने अपनी बहन रुक्मिणी की शादी शिशुपाल से करने की योजना बनायीं थी लेकिन रजा भीमक चाहते थे की उनकी सुपुत्री रुक्मिणी स्वयंवर से अपना पति चुने स्वयंवर की तेयारिया चल रही थी की रुक्मिणी ने अपनी कुलस्वामिनी अम्बादेवी के दर्शन की अभिलाषा लेकर अम्बनाग्री अमरावती में प्रवेश किया, यहाँ द्वारका के रजा श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी का अपहरण कर लिया रुक्मी को जब यह पता चला तो उसने अपनी सेना के साथ श्रीकृष्ण का पीछा किया और पेढ़ी नदी तक आ पहुंचा लेकिन श्रीकृष्ण रुक्मिणी को रथ में लेकर दूर निकल गए थे उनको पकड़ नहीं पाने वजह से रुक्मी दुंखी, अप्मानिक और खिन्न हो गया और उसने राजधानी कौन्दल्यापुर का आजीवन त्याग कर दिया उसने भोजकुट (भातकुली) में अपनी राजधानी बनाने का विचार किया और वाही रहने लगा निराश और दुंख: से रुक्मी के सर और दाढ़ी के बाल सन्यासियों की तरह बढ़ गए भगवन नेमिनाथ को जब केवलज्ञान प्राप्त हुआ तो उन्होंने संपूर्ण भारत का भ्रमण कर दिव्य ध्वनि द्वारा जैन धर्मं का प्रचार प्रसार करना शुरू किया भगवन नेमिनाथ के माता-पिता विदर्भ के रिधपुर के निवासी थे यह तथ्य विख्यात इतिहासकार एवं पुरातत्व विशेषज्ञ श्री वाई. के. देशपांडे ने अपनी एक लेखमाला में अंकित किया हैं मथुरा के राजघराने और विदर्भ का प्राचीन काल में भी घनिष्ठ सम्भन्ध था. भातकुली के पश्चिम में १ मील की दुरी पर एक ऊँचा स्थान हैं रुक्मी राजा इसी स्थान पर एक भव्य चैत्यालय का निर्माण कराया था वहां अजंता पर्वत के वेरुल एलोरा भाग से काले पाषण मंगवाकर शिल्पकारो के हांथो १००८ भगवन श्री आदिनाथ की मूर्ति बनवाई मूर्ति बन जाने के बॉस इस मूर्ति को उस चैत्यालय में विधिपूर्वक स्थापित किया गया भातकुली के अतिशय क्षेत्र में आज जो मूर्ति विराजमान हैं, यही मूर्ति हैं. श्री अतिशय क्षेत्र भातकुली में प्रतिष्ठान श्री १००८ भगवन आदिनाथ स्वामी की यह प्राचीन एवं मनोज्ञ मूर्ति भारतवर्ष में अद्वितीय हैं क्षेत्रदर्शन : मुख्य वेदी पर मुलनायक भगवन आदिनाथ स्वामी की श्यामवर्ण पधमासन प्रतिमा विराजमान हैं इसका आभाग्यमंडल अतिमनोग्य हैं इसके आलावा यहाँ अन्य प्रतिमा भी हैं बायीं ओर की वेदी में भगवन आदिनाथ की स्वेत्वर्ण प्रतिमा हैं इसके आलावा कृष्ण भगवान की उन्नत भगवान पार्श्वनाथ स्वामी की ओर बादामी वर्ण की पार्श्वनाथ स्वामी की प्रतिमा हैं यहाँ दीवार में पाषण - फलक में चौबीसी बनी हैं दुरी वेदी पर भगवान पुष्पदंत की श्वेत वर्ण की पद्मासन प्रतिमा हैं ओर पार्श्वनाथ स्वामी की भी मुर्तिया हैं दाई ओर की वेदी में चंद्रप्रभु भगवान की उन्नत श्वेत वर्ण पद्मासन प्रतिमा हैं मुख्या मंदिर के आगे ३० कास्ट स्तंभों पर आधारित खुला मंडप बना हैं यहाँ मनमोहक आकर्षक शेली का मानस्तंभ बना हैं |
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Bhatuli Tirth situated near amravati, maharashtra. Teerth darshan in Maharashtra, shri Adinath Swami Digambar Jain Sansthan Atishay Kshetra, Bhatkuli (Jain) District – Amravati – 444721, Telephone No. : 0721-2389041, 18 k.m. far away from Amravati |
Bhatkuli Teerth, Bhatkuli Jain Tirth, Shri Adinath Swami Digambar Jain Sansthan Atishay Kshetra |
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