
हमारे तेइसवे तीर्थंकर पार्श्वनाथ स्वामी क्षमा, समता, दया, सहिस्नुता, धेर्य. जैसे महान गुणों से जिनशाशन पर सूर्य के सामान आलोकित हैं, जहाँ उनका जीवन चरित्र सबके लिए प्रेरणादायी हैं, वही वे जिन्धर्मा की परम्परा प्रवाह के आधार स्तब्ध भी हैं, वर्तमान परिवेश में जब समस्त विश्व में हिंसा, आतंकवाद, क्रोध और प्रतिशोध की दावाग्नि धधक रही हैं, वहां भगवन पार्श्वनाथ की उत्तम क्षमाशीलता ही विश्व को महाविनाश से बचा सकती हैं.
पूर्व कल्पना के आधार पर कुछ समय पूर्व जैनेतर विद्वानों ने एवं इतिहासकारो ने भ्रान्तिवश भगवान पार्श्वनाथ की एतिहासिकता पर प्रश्नचिंह लगा दिया था. उनका मन्ना था की भगवान महावीर जैन धर्मं के संस्थापक हैं तथा भगवान पार्श्वनाथ चातुर्मास धर्मं के प्रवर्तक हैं. परन्तु धीरे-धीरे जैन साहित्य और जैन इतिहास के तुलनात्मक अध्ययन तथा उत्खलन में प्राप्त प्राचीन शिलालेखों, अवशेषों से अंतत: उन्होंने भगवान पार्श्वनाथ की एतिहासिकता को मुक्त कंठ से स्वीकार किया तथा इतिहासकारो ने भी पशचात साहित्यों में परिवर्तित किया भगवान पार्श्वनाथ के समस्त अहिछत्र, श्री सम्मेद शिखरजी, वाराणसी आदि तीर्थो को सहृदय स्वीकार किया गया.
माता : श्री वामादेवी
पिता : श्री अश्वसेन
जन्मनागरी : वाराणसी
जन्मतिथि : पोष कृष्ण ग्यारस
वन्श : उग्रवंश
राशी : कुम्भ
ऊंचाई : नो हाथ
वर्ण : नील के सामान
चिह्न : सर्प
आयु : १०० वर्ष
वैराग्य - कारण : जाती स्मरण
दीक्षा तिथि : माघ शु: ग्यारस
दीक्षा : दो उपवास पूर्वक ३०० राजाओ के साथ
केवलज्ञान : दीक्षा के चार माह बाद
केवलज्ञान काल : ६९ वर्ष ८ माह
समवसरण विस्तार : संवा योजन
कुल गण्धर : १०
प्रधान गण्धर : श्री स्वयम्भू
मुख अयिर्का : सुलोचना
मुख श्रोता : श्री अजित
मुनि : १६ हजार
आयिर्का : ३८ हजार
श्रावक : १ लाख
श्राविका : ३ लाख
मोक्ष तिथि : श्रावण शु. सप्तमी
मोक्ष स्थल : सुवार्नाभाद्र कूट, सम्मेद शिखरजी
यक्ष : मातंग
यक्शोणि : पद्मावती |